दिन जल्दी जल्दी ढलता है - हरिवंशराय बच्चन

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे--
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?--
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!



प्रस्तावना

"दिन जल्दी जल्दी ढलता है" यह हरिवंशराय बच्चन रचित बहुत ही छोटी लेकिन भावपूर्ण कविता है। यह बच्चन जी की आत्मवादी कविता है, जिसमें कवि ने खुद का उदाहरण देकर इन्सान के दुख का गहरा निरूपण किया है।

मनुष्य जब एकांकी जीवन व्यतीत करता है तब उसे किस प्रकार के कष्टों को झेलना पड़ता है, इसी बात को व्यक्त करते हुए कवि ने दिन को समयसुचकता का प्रतीक माना है।

मनुष्य के जीवन में कुछ समय ऐसा होता है जब वो बहुत सुखी होता है, लेकिन जीवन में कभी दुःख भी आता है। इन्सान अगर समय पर हर बात समझ जाए तो जीवन का सफर आसान हो जाता है। जब किसी बात का समय निकल जाता है उसके बाद वह बात अर्थहीन हो जाती है।

समय किसी के लिए रुकता नहीं है। जो इन्सान अपना लक्ष्य पाने के लिए निकल पड़ता है उसे समय का पता नहीं चलता। लक्ष्य का महत्व और उसे पाने में आने वाले बुरे समय में शांति बनाए रखना बहुत जरूरी बन पड़ता है।

"रख हौसला वो मंजर भी आयेगा
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा
थककर न बैठ, 
ओ मंजिल के मुसाफिर
मंजिल भी आयेगी ओर मिलने का 
मजा भी आयेगा।

भावर्थ


कवि ने प्रथम पंक्तियों में पंथी का उदाहरण देते हुए कहा है कि….
हो जाए न पथ में रात कहीं
मंजिल भी तो है दूर नहीं -
यह सोच थका दिन का पंथी भी
जल्दी - जल्दी चलता है,
दिन जल्दी - जल्दी ढलता है।"

पंथी अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रहा है।  वो सोचता है कि रास्ते में ही कहीं रात ना हो जाए, मेरी मंजिल भी ज्यादा दूर नहीं है। मुसाफिर पूरा दिन चलने की वजह से थक गया है, लेकिन गंतव्य का स्मरण उसके पैरो में नई जान और स्फूर्ति भर देता है।

दूसरा प्रकृति का उदाहरण देते हुए कवि कहते है कि जब चिड़िया शाम को अपने घोसलों की तरफ बढ़ती है तो उसे याद आता है कि उसके बच्चे उसकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। वे अपने घोसलों से बाहर झांक रहे होंगे। जिसके कारण चिड़ियों के पंखों में भी चंचलता आ जाती है। उनकी गति बढ़ जाती है। यह बात निम्नलिखित पंक्तियों से निष्पन्न होती है…

" बच्चे प्रत्याशा में होंगे -
नीडो से झांक रहे होंगे
यह ध्यान परो में चिड़ियों के 
भरता कितनी चंचलता है,
दिन जल्दी - जल्दी ढलता है।"

इन दोनों पंक्तियों में पंथी और चिड़िया दोनो सोचते है की समय चला जा रहा है। दिन ढलने वाला है और उनकी गति में स्फूर्ति आ जाती है। जिससे उसका कार्य सफल होता है। इसलिए कहा गया है कि…. "समय की कीमत करनेवाला और अपने कार्य कि बार बार समीक्षा करनेवाला व्यक्ति अवश्य सफल होता है।"

इसी तरह समय का जीवन में बहुत बड़ा महत्व होता है। इसीलिए इन्सान को अपना कार्य समय के साथ करना चाहिए क्योंकि एकबार समय चला जाएगा तो फिर वो लौटकर नहीं आयेगा।

अंतिम पंक्तियों में कवि अपनी अभावभरी एवम् एकांकी जीवन को व्यक्त करते हुए कहते है कि मुझसे मिलने को कोई विकल नहीं है, कोई बेताब नहीं है, कोई मेरा इंतजार नहीं कर रहा है, तथा में भी किसी के लिए चंचल नहीं होता, बेचैन नहीं होता। क्योंकि कवि के जीवन में ऐसा कोई भी नहीं है जो कवि का रास्ता तक रहा होगा या फिर राह देख रहा होगा। यही प्रश्न कवि के पद को शिथिल कर देता है, तथा हदय में विहवलता भर देता है।

"मुझसे मिलने को कौन विकल?
होऊ में किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को,
भरता उर में विह्वलता है।
दिन जल्दी जल्दी ढलता है।"

इस तरह कविता में कवि ने पहले समय की महत्ता दर्शाई है कि हर इंसान को समय के साथ चलना चाहिए। संत कबीर दास ने भी कहा है….

"कल करे सो आज कर,
आज करे सो अब।"

और बाद में अपने जीवन में दुखी एवम् कष्टपूर्ण जीवन को प्रतिपादित किया है।

निष्कर्ष

"Time and Tide wait for none"

समय और समुद्र में आनेवाली भरती किसी के लिए भी रुकती नहीं है। चाहे वो अमीर हो, आम इन्सान हो या फिर गरीब, छोटा हो या बड़ा, प्राणी हो या पक्षी, बच्चा हो या युवान, निम्न हो या उच्च। और इसी समय की बात हमे इस कविता में कवि ने पंछी तथा पंथी का उदाहरण देकर समजाई है।

"हर मोड़ से बस कुछ पल का
 रिश्ता ही अपना सा लगता है,
पहुंचना है मंजिल के करीब 
बनता है किस्मत से ही ये अपना नसीब
सच कहो तो बस यूंही गुजरता हुआ 
हर एक पल बहुत कुछ कहता है 
दिन जल्दी जल्दी ढलता है।"


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